2025 के विधानसभा चुनावों को लेकर बिहार एक बार फिर से सियासी बिसात का केंद्र बनने को तैयार है। लेकिन इस बार हालात जरा अलग हैं। चुनाव की औपचारिक घोषणा अभी भले ही नहीं हुई हो, लेकिन सियासी गोटियाँ बिछ चुकी हैं और मोहरे अपनी जगह पर आ रहे हैं। एनडीए ने तो लगभग साफ कर दिया है कि नीतीश कुमार ही उनके सीएम चेहरा होंगे, लेकिन महागठबंधन में अभी भी इस बात पर सहमति नहीं बन सकी कि ताज किसके सिर बंधेगा—तेजस्वी यादव या कोई और? ऐसे में चुनावी मैदान में एक नई धुरी भी उभर रही है—प्रशांत किशोर और उनकी ‘जन सुराज’ पार्टी, जो इस बार अकेले दम पर चुनावी समर में उतरने की घोषणा कर चुकी है।
बिहार में इस बार विधानसभा चुनाव तय कार्यक्रम से थोड़ा पहले हो सकते हैं। सूत्रों की मानें, तो सितंबर के पहले हफ्ते में ही निर्वाचन आयोग बिहार विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान कर सकता है। आयोग ने स्थिति का आंकलन शुरू कर दिया है और पूरी संभावना है कि इस बार भी तीन चरणों में चुनाव होंगे—जैसा कि 2020 में हुआ था। 2015 में जहाँ पांच चरणों में चुनाव हुए थे, वहीं 2020 में महामारी के चलते केवल तीन चरणों में मतदान कराया गया। आयोग की प्राथमिकता है कि समय रहते निष्पक्ष और व्यवस्थित चुनाव संपन्न हों, इसलिए तैयारियाँ ज़ोरों पर हैं।
महागठबंधन के भीतर सीट बंटवारे को लेकर खींचतान शुरू हो गई है। तेजस्वी यादव को भले ही विपक्ष का चेहरा माना जा रहा हो, लेकिन कांग्रेस और वाम दलों के भीतर उन्हें लेकर असहमति की खबरे आ रही हैं। वहीं दूसरी ओर भाजपा और जेडीयू की नई जोड़ी (या यूं कहें बार-बार बनी-बिगड़ी जोड़ी) इस बार मजबूत गठबंधन की बात कर रही है। लेकिन जनता अब इस “आया-राम गया-राम” राजनीति से ऊब चुकी है। प्रशांत किशोर की एंट्री को भी हल्के में नहीं लिया जा सकता। एक रणनीतिकार से नेता बने किशोर ने जन सुराज के जरिए बिहार के गांव-गांव तक पैठ बना ली है।



